राजनीतिक संरक्षण में गुंडागर्दी यही हमेशा से ट्रेंड रहा है राजिम विधानसभा क्षेत्र का शुक्ल बंधुओं के समय से चला आ रहा दस्तूर, जिसकी लाठी उसकी भैंस कभी अजीत जोगी को कहना पड़ा था "राजिम के मामले में मैं दखल नहीं दूंगा"
परमेश्वर कुमार साहू@राजिम(गरियाबंद)।विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत छुरा नगर में एक पत्रकार को उनके अपने ही घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जिसका आज तक कोई सुराग हाथ नही लग पाया। इसके बाद तो समझों पत्रकारों पर मानो सामत आई हुई है। राजिम विधानसभा में पत्रकारिता करना मतलब चाटुकारिता का आज पर्याय बन चुका है। जिसने भी सत्तासीन नेताओं के विरूद्ध कलम चलाया समझों उसने अपनी मुसीबत स्वयं बुला लाया। जरूरी नहीं कि उसकी हत्या ही करवाई जाय। साम, दाम, दंड, भेद के सारे जतन किया जाता रहा है यहा तक कि प्रशासन के कंधे पर बंदूक रखकर सताना तो यहा आम बात रहा है। और यह सब आज से नही बल्कि राज्य गठन के पूर्व से ही चला आ रहा है। शुक्ल बंधुओं के समय पाण्डुका गाँव में उसके शागिर्द रहे एक मालगुजार के खिलाफ तो राजिम थाने में कभी रिपोर्ट तक नही लिखा गया। जबकि उसके और उसके परिवार के जुल्म की इंतहा रही। जिसके शिकार आज भी गाँव-गाँव में मौजूद है।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भी राजिम विधानसभा क्षेत्र में आगजनी बलवा मारपीट ही नही अपितु आदिवासी दम्पत्ति की नृशंस हत्या तक कर दी गई जिस पर न्याय की गुहार लगाने गए ग्रामीणों को तब के मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी ने दखल देने से साफ इंकार करते हुए पीड़ितों को बैरंग लौटा दिया था। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि राजिम क्षेत्र में गुंडागर्दी के कितने सितम ढ़ाये गए होंगे। राज्य गठन के उपरान्त पूर्व सांसद चंदूलाल साहू के कार्यकाल में ही एक मात्र समय राजनैतिक द्वेष और प्रतिशोध में कोई क्रियाकलाप होता हुआ नही देखा गया। जब राजिम क्षेत्र में शत प्रतिशत शांति कायम रही। पूर्व सांसद पवन दीवान के क्षेत्र में उपस्थिति के कारण राजिम क्षेत्र की जनता न्याय की उम्मीद करती रही और कुछ हद तक मिलता भी रहा। लेकिन अब तो पवन दीवान भी नही रहे और चंदूलाल साहू के हाथ-पैर सत्ता की ताले में बंद है। तब राजिम विधानसभा क्षेत्र में न्याय की उम्मीद ही आज बेमानी हो गया है।
रेत और खदान माफिया के साथ भ्रष्ट्र तंत्र का आज पूरे विधानसभा क्षेत्र में अधोषित कब्जा है। सत्तापक्ष के खुला संरक्षण में सभी रेतघाट चल रहे है। विरोध के हर स्वर को आज पूरी ताकत के साथ दबा देने की साजिश रची जा रही है। क्षेत्र में पत्रकारिता आज जीवन के साथ सौदा जान पड़ता है। बाहरी हो चाहे स्थानीय गुंडागर्दी का दौर बदस्तूर जारी है। कलम के धनी पत्रकार आज चाकरी करते देखे जा सकते है जो लोकतंत्र पर कलंक और धब्बा है। विरोध के हर स्वर को दबा देने की नीति को कतई राजनीति नही कहा जा सकता है। पितईबंद रेतघाट खनन माफियाओं के गुर्गों द्वारा पत्रकारों पर हमला वास्तव में लोकतंत्र पर सीधा हमला है जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है। लेकिन राजिम का पूरा परिदृश्य आज नेतृत्वहीन है इसलिए नेतृत्वहीनता का दंश तो झेलना ही पड़ेगा ना। आज राजिम की जनता जिसपर भी दांव लगाता है वो दांव उल्टा ही पड़ता जा रहा है। जनता से विश्वासघात आज फैशन का रूप ले चुका है। अपराधी को महिमामंडित करने की आज नई परंपरा विकसित हो गयी है।