भ्रष्ट्राचार, शराबखोरी, चीटफंड हवाला ट्रेडिंग और धार्मिक पाखंड बना छत्तीसगढ़ का नया पहचान
परमेश्वर कुमार साह@गरियाबंद।बहुत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आज हमारी पहचान पूरे देश में एक शराबखोर राज्य के रूप में बन चुका है। ना सिर्फ शराबखोरी में प्रदेश अव्वलदर्जा रखता है बल्कि धार्मिक पाखंड के मामले में भी यह प्रदेश पहले पायदान पर विराजमान है। व्यापारी को संत का दर्जा इसी प्रदेश की जनता देती है और पूजती है जिसका कोई सानी नही। चिटफंड के मामले को ही ले तो प्रदेश के हर दूसरे घर से लूटकर फर्जी कंपनिया और उसके लोग यहा से रफू चक्कर हो गये है वही फॉरेक्स ट्रेडिग और बिटकाईन के नाम पर हवाला का बड़ा कारोबार आज भी फल-फूल रहा है। महादेव सट्टा ऐप का मामले को ही ले तो सारा वाकया समझते देर ना लगेगी। रही बात भ्रष्ट्राचार की तो राजस्व और पुलिस विभाग के किसी भी अफसर के घर छापा मार लो सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जायेगी। राजस्व विभाग में हर काम का एक फिक्स रेट चला रखा है अफसरों ने। जिसका तोड़ किसी के पास नही है। सिटीजन चार्टरशिप जनता के गाल पर एक करारा तमाचा की तरह है। सत्ता के सिहासन पर विराजमान सभी अफसर और नेता इन सब कुकर्मों से भलीभांति परिचित है। बावजूद जितनी जल्दी हो सके बटोर लेने की चाह ने इस गोरखधंधे को कानूनी रूप दे दिया गया है। कही से भी भ्रष्ट्राचार के खिलाफ कार्यवाही नही होना आखिर कानूनी अमलीजामा पहनाना नही तो फिर क्या है? आज तो हालत यह हो गई है कि शिकायतकर्ताओं की ही उल्टे जाँच की जा रही है जो प्रदेश के लिए एक दुस्वप्न से कम नहीं।
भ्रष्ट्राचार की जड़ छत्तीसगढ़ प्रदेश में इस कदर फैला हुआ है कि लोग अब इसे एक उत्सव की तरह मनाने लगे है। सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को सुविधा शुल्क और भेंट-पूजा चढ़ाये बगैर एक फौती तक नही उठा सकते। नामांतरण और बटवारा में तो फिर मोटी रकम चुकाना पड़ता है। प्रति बी-1 तीन हजार फौती उठाने, प्रति हिस्सेदार पाँच हजार नामांतरण और बटांकन तो देना ही पड़ेगा। नही देने पर ऑनलाईन आदेश तब तक रूका रहता है। और यदि यह सब चुका दिया तो फिर सबसे नीचले दर्जे के कर्मचारी को खुश करना होगा नही तो कोई ना कोई कमी और त्रुटि बताकर आपके होने वाले काम को भी अनंतकाल तक रोक दिया जाता है। विधानसभा में कुरूद विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने इस मामले को उठाते हुए राजस्व विभाग में पेंडिग प्रकरणों पर सरकार से सवाल उठाया था। लेकिन वह बात भी आई-गई हो गयी। सरकार के किसी तंत्र को किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। कमाल का लोकतांत्रिक शासन है हमारे यहा। पूरी दुनिया में अनूठा कह सकते है।
इस अजीबों-गरीब लोकतंत्र में लोकतंत्र सिर्फ चुनावों तक ही और वह भी वोट देने मात्र तक सीमित कर दिया गया है। पूरे देश में आज कही पर भी शासन के खिलाफ आवाजें उठती है उसे पूरी ताकत से सरकारें दबा देती है। सरकार किसी भी पार्टी का क्यों ना हो कोई फर्क नही पड़ता। जब आलोचना तक को देशद्रोह माना जाने लगे तो फिर सच के बाहर आने के और कौन सा रास्ता बचता है। दुर्ग जिले का एक व्यक्ति प्रदेश के विभिन्न जिलों में सैकड़ो किसानों को लालच देकर उनके सालों की मेहनत हड़प जाता है। पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर किसानों को खुलेआम लूटा जाता है। यहा तक की शासन बदल जाता है और दूसरी पार्टी सरकार में आ जाती है। बावजूद आरोपी को बचाने का षडयंत्र किया जाता है चाहे हजारों किसान परिवार तबाह ही क्यों ना हो जाये सत्ता प्रतिष्ठान को कोई फर्क नही पड़ता है। यह कैसा तंत्र है। सुना है रोम जल रहा था और नीरों चैन की बंशी बजा रहे थे। दुर्भाग्य से आज यह सब हमारे ही प्रदेश में होता दिख रहा है।