विडंबना: वीआईपी के लिए भर पेट भोजन लेकिन राजिम मेले में पत्रकारों को भोजन के नाम पर प्रवेश वर्जित,प्रशासन से कोई निर्देश नहीं,टोकन स्टाल में बैठे जिम्मेदारों ने कहा पत्रकारों के भोजन के लिए कोई आदेश नही,पहुंच और पावर वाले खिलवा रहे किसी को भी खाना,लेकिन इस ओर,...
परमेश्वर कुमार साहू@ राजिम।छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम में माघी पुन्नी मेले का शुभारंभ हो गया है।जिसमे राज्य के कोने कोने से लोग इस मेले में पहुंच रहे है।जिसमे भोजन की व्यवस्था के लिए प्रशासन द्वारा वीआईपी लोगो को केवल चुना है। जहा हजारों लोग रोज भोजन कर रहे है।लेकिन देश के चौथे आधार स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों के लिए भोजन तो दूर प्रवेश ही वर्जित है।जिस पर गरियाबंद जिला प्रशासन अपना पर्दा डाल रखे है।इस मामले को लेकर हमारी टीम के द्वार पड़ताल किया गया और जब स्टाल में बैठे प्रभारी से बात किया गया तो बताया गया की पत्रकारों के लिए भोजन संबंधी किसी भी प्रकार से आदेश नही है।
आपको बता दे की छुटभईया नेता से लेकर अधिकारियों के चम्मच तक वीआईपी भोजन की व्यवस्था के लिए टोकन कट रहा है।लेकिन जब आती है नीचे स्तर के कर्मचारियों की तो उन्हे टोकन लेने के समय पूरे लोगो की संख्या दिखानी पड़ती है और पहुंच वाले लोग केवल एक व्यक्ति जाकर सैकड़ों टोकन ले लेते है।दिन और रात 24 घंटे हर चुनौती को सामना कर प्रयागराज का खबर कवरेज करने वाले पत्रकारों के लिए शासन प्रशासन द्वारा भोजन की व्यवस्था न होना एक बड़ा सवाल है।जिससे स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित प्रशासन का किरकिरी होना स्वाभाविक है।रात को जब 8 बजे के आसपास महिला स्व सहायता समूह बिहान द्वारा संचालित भोजन व्यवस्था को लेकर स्टाल में बैठे जिम्मेदारों से जब मीडिया द्वारा सवाल किया गया तो मीडिया कर्मी के सबंधित विभाग द्वारा किसी भी प्रकार से दिशा निर्देश नही मिलने की जानकारी मिला।हालांकि पत्रकार इस भोजन व्यवस्था में जाकर भोजन करने के बजाय खुद की व्यवस्था से भोजन करने पर विश्वास रखते है क्योंकि सरकारी भोजन महज इनके लिए केवल दिखावा है और केवल वीआईपी लोगो को फोकट में खाने का साधन बन चुका है।इसके बावजूद भी किसी ज़िम्मेदारो को इस ओर ध्यान नहीं है जो सबसे बड़ी विडंबना है।फिर भी कर्तव्यनिष्ठ हमारे कलम के सिपाही छत्तीसगढ के इस पावन धरा राजिम में हो रहे मेले की खबरों को हर चुनौती का सामना कर लगातार खबर कवरेज कर रहे है।जो कबीले तारीफ है।लेकिन जिस तरह से भोजन खिलाने में भेदभाव किया जा रहा है वो जिला प्रशासन सहित नेताओ की कार्यशैली में सवाल खड़ा कर रहा है।