क्या आम चुनाव में जनता हमेशा डायनैमिक लिडरशीप को ही चुनती रही है? - Savdha chhattisgarh
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क्या आम चुनाव में जनता हमेशा डायनैमिक लिडरशीप को ही चुनती रही है?


 परमेश्वर कुमार साहू/गणेश साहू की कलम से विशेष लेख@गरियाबंद।यह बात सौ फीसदी सच के करीब है कि जब भी देश में आम चुनाव (जनरल इलेक्शन) हुए है देश की जनता ने हमेशा ही डायनैमिक लिडरशीप पर ही अपना भरोसा दिखाया है और ऐसे नेता और उनकी पार्टी ही चुनाव जीतती रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है। और इसलिए तो प्रायः सभी राजनैतिक दल का चुनाव प्रचार कैपेन ऐसे डायनैमिक लिडरशीप के ईद-गिर्द ही घुमती रही है जिससे यह चुनाव भी अछूता नहीं है।

इस बात को कहने में अब रत्तीभर भी संदेह नही रहा है कि भारत का यह वर्ष 2024 का आम चुनाव प्रधानमंत्री और देश के लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी के डायनैमिक लिडरशीप में ही लड़ा जा रहा है और देश उनसे काफी अपेक्षा पाल रखा है इस बात में भी अब कोई अतिशयोक्ति नही रह गया है। चुनाव नतीजों में भले अभी 10-12 दिन शेष है बावजूद पूरा देश का मोदीमय दिख रहा है।

एक ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी काग्रेस जहा नेतृत्वहीनता की स्थिति में दिखाई पड़ती है जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करिश्मा खो गया प्रतीत होता है। काग्रेस में आज की तारीख में डायनैमिक लिडरशीप की कमी देश को भयंकर खल रही है। राहुल गांधी छूटा हुआ कारतूस की भांति जान पड़ता है जिसपर परिवारवाद की गंभीर आरोप तो है ही भारत के जन-मन को मथने की क्षमता भी नही ही दिखाई पड़ती है। दुर्भाग्य से वे काग्रेस की कमान अघोषित रूप से अपने ही पास रखना चाहते है जो उनके गैर जिम्मेदाराना व्यावहार को ही प्रदर्शित करता है। देश उनमें किसी भी तरह अपना भविष्य नही देखता है अनेकों चुनावों परिणामों के बाद तो स्थिति स्पष्ट है ही फिर भी ना जाने काग्रेस पार्टी उनकों क्यों ढ़ो रही है। शायद बिखरने के डर से।

आज देश का जन-मन आज भारत को दुनिया में ऊचा स्थान पर देखना चाहता है। देश को 21 वी सदीं में अब भारत की जनता दुनिया से किसी भी मामले में पीछे नही देखना चाहते है। मोदी ने देश को विकसित भारत का सपना दिखाया है जिससे भारत की युवा और महिला अपने लिए अवसर देख रही है और वे मोदी द्वारा दी गई तर्क से संतुष्ट भी दिखते है वही काग्रेस पाटी अभी भी दिग्भ्रमित दिखाई पड़ती है जिससे देश का युवा और खासकर पहली बार का वोटर साफ-साफ अहसास कर पा रहा है कि सपने बुनने तक में भी काग्रेस काफी पीछे है। जो भी हो देश का मनीषा इस स्थिती को असहज महसूस कर रहा है कि लोकतंत्र में विपक्ष का इतना ज्यादा कमजोर हो जाना किसी भी तरह शुभ संकेत तो कतई नही है। लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी दल नेतृत्व हीनता से बाहर निकलने अभी तक तो तैयार नही दिखता इसलिए इस लोकतंत्र की जनता मालिक की जगह भगवान मालिक कहा जा सकता है क्यो कि किसी भी तरह से निरंकुश शासन आखिर लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभरता है। खैर अपातकाल के बाद से भारत ऐसे खतरो से निपटना भी सीख गया है यह कम सुकुन की बात नहीं हैं।



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