छत्तीसगढ़ की बदहाल शिक्षा व्यवस्था और बर्बाद होती पीढ़ी एक बड़ा कारण जनपद और जिला पंचायत के माध्यम से हुई स्थानीय नियुक्ति ?
परमेश्वर कुमार साहू@राजिम। वैसे तो राज्य की स्कूली शिक्षा का स्तर अपने गठन के दौर में ही स्तरहीन ही नही दोयम दर्जे की रही है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के समय यह गरीब ही नही बीमारू राज्य की श्रेणी में भी शामिल रहा। लेकिन बहुत सारे पैरामीटर में आज यह राज्य प्रतिस्पर्धात्मक स्तर पर पहुचा है। जिस पर संतोष किया जा सकता है। बावजूद स्कूली शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता ही चला जा रहा है, खासकर सरकारी स्कूलों में।
राज्य का नेतृत्व इससे अनजान हो ऐसा तो नही दिखाई पड़ता है वरना आत्मानंद स्कूलों की श्रृंखला के बाद अब उच्च शिक्षा में इसे लागू किया जाना ही ढ़ोल की पोल खोलने के लिए काफी है। जिस प्रकार राज्य गठन पश्चात् स्कूली शिक्षा को भगवान भरोसे उनके हाल पर छोड़ा गया उससे आज यह समस्या भयावह रूप में सामने खड़ी है। ज्यादातर सरकारी स्कूल में कदम रखिये और जानकारी जुटाये तो पता चलेगा कि बच्चों को लिखना तो दूर पढ़नें तक में कठिनाई है। शिक्षा के अधिकार के तहत ऐसे बच्चों को एक से दूसरे फिर तीसरे और ऐसे ही कक्षा आठ तक ले जाया जा रहा है।
यहा पर गौर करने वाली बात यह है कि राज्य सरकार ने जिस व्यवस्था के तहत जनपद और जिला पंचायत के माध्यम से शिक्षकों की नियुक्ति की है। वह प्रक्रिया ही घोर भ्रष्ट्राचार और अवसरवाद में डूबी हुई थी तब के जनपद और जिला पंचायत प्रतिनिधियों खासकर चयन समिति के हिस्सा रहे लोगो की आज ठाठ देखेगें तो दंग रह जायेगे। मामूली से मामूली राजनैतिक कार्यकर्ता भी आज माननीय बना बैठा है। जिसे भी मौका मिला उसके वारे न्यारे हो गए मालूम पड़ता है और इस भ्रष्ट्राचार के भेंट कोई एक नही अनेकों पीढ़ी को अब झेलना होगा।
एक इंजीनियर ज्यादा से ज्यादा कुछ निर्माण को खराब करेगा कुछ लोगों की जान लेगा लेकिन एक शिक्षक के संपर्क का दायरा ज्यादा व्यापक है। जिससे अनुमान लगाना भी कठिन है वे अपने कार्यकाल में कितने विधार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करेगा। भाई भतीजावाद और भ्रष्ट्राचार की तुला पर तौलकर यदि नियुक्ति हुई है जिसे नियुक्ति दाताओं के वर्तमान रसूख के अलावा हाल के वर्षो में अध्ययनरत छात्रों को परोसी जा रही स्तरहीन शिक्षा से मापा जा सकता है।
क्षेत्र के प्रसिद्ध समाजसेवी ग्राम मुरमुरा निवासी गणेश राम साहू ने सरकारी स्कूलों की दयनीय दशा पर राज्य सरकार और उससे जुड़े नीति निर्मताओं को सलाह दी है कि यदि शिक्षा विभाग में स्थानीय नियुक्ति की नीति को ना अपनायें और सभी शिक्षकों की नियुक्ति 150 से 200 किमी के दायरे के बाहर रखे तो कुछ स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। और देर सबेर यह नीति ही वर्तमान स्वरूप को बदलने का बड़ा कारण बन सकता है। आखिर एक सरकारी सेवक को सरकार की शर्त तो मानना ही पड़ेगा। नये शिक्षा सत्र से राज्य के सभी शिक्षकों को गृह जिले से दूर भेजने की कवायद ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का बड़ा मार्ग प्रशस्त करेगा। ऐसी अपील गणेश राम साहू ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से की है।