महासमुंद में शराब माफिया का खुला खेल: कलेक्टर-SP की मिलीभगत से गुंडाराज, गांव-गांव नशे की लहर, पत्रकारों पर जान का खतरा
Sunday, 9 November 2025
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परमेश्वर कुमार साहू जर्नलिस्ट@महासमुंद / रायपुर संभाग का यह जिला अब अवैध शराब के अड्डों का गढ़ बन चुका है। बोरियाझर, मोगरा और आसपास के दर्जनों गांवों में दिन-दहाड़े देशी-विदेशी शराब की पेटियां सरकारी ठेकों से निकलकर जंगलों, तालाबों और गलियों तक पहुंच रही हैं। शराब कोचियों के गुंडे खौफ का पर्याय बन गए हैं, जबकि जिला प्रशासन, पुलिस और आबकारी विभाग मूकदर्शक बने हुए हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि और छोटे-मोटे नेता इस कारोबार के संरक्षक बने हुए हैं। नतीजा – युवा, महिलाएं और बच्चे नशे की गिरफ्त में, परिवार बिखर रहे हैं, और सरकार की साख दांव पर।
गांव-गांव शराब की भट्टियां, सरकारी ठेके से सीधा कनेक्शन
जिले में शासन द्वारा निर्धारित शराब दुकानों पर खरीद की सीमा तय है, लेकिन नियम कागजों तक सीमित हैं। सूत्रों के अनुसार, हर रोज सैकड़ों पेटी प्लेन, मसाला, गोवा और विदेशी ब्रांड की शराब ठेके के पिछले दरवाजे से बाहर निकल रही है। ये पेटियां शराब माफिया के हाथों पहुंचकर गांवों में खपाई जा रही हैं।
बोरियाझर का जंगल-तालाब: मोगरा से बोरियाझर जाने वाले कच्चे रास्ते पर जंगल के पास एक तालाब अवैध शराब का बड़ा अड्डा बन चुका है। यहां रोजाना दर्जनों पेटी शराब खपाई जाती है। ग्रामीणों को लालच देकर ठेका दिलवाया जाता है, फिर शराब उनके नाम पर निकालकर माफिया गांवों में बेचता है।
गली-गली नशा: स्कूल जाते बच्चे, घर संभालती महिलाएं और खेतों में काम करने वाले मजदूर – कोई भी नशे से अछूता नहीं। परिवारों में झगड़े, मारपीट और तलाक की घटनाएं बढ़ी हैं।
प्रशासन की खुली मिलीभगत: कलेक्टर, SP और आबकारी विभाग पर गंभीर सवाल
जिले में शराब माफिया का हौसला इसलिए बुलंद है क्योंकि उनके तार ऊपर तक जुड़े हैं।
पुलिस की नाकामी: अवैध भट्टियां और बिक्री के अड्डों पर छापे नाममात्र के हैं। कई मामलों में पुलिस पहुंचती है, लेकिन कार्रवाई सिर्फ दिखावा बनकर रह जाती है।
आबकारी विभाग की सांठगांठ: ठेके पर मॉनिटरिंग का दायित्व आबकारी विभाग का है, लेकिन अधिकारी कमीशन के लालच में डूबे हैं। शराब कोचिए बोरी-थैला लेकर ठेके पर पहुंचते हैं और बेखौफ पेटियां लोड कर ले जाते हैं।
सवाल यह है – बिना विभागीय अधिकारी की मिलीभगत के पेटी-पेटी शराब बाहर कैसे निकल रही?
मई 2025 में बागबाहरा के आबकारी प्रभारी को निलंबित किया गया था, जब 14 पेटी देशी, 8 पेटी गोवा शराब और विदेशी मदिरा जब्त हुई थी। लेकिन यह कार्रवाई सिर्फ खानापूर्ति साबित हुई। जमीनी हकीकत नहीं बदली।
जनप्रतिनिधियों का दोहरा चेहरा भाषणों में सुशासन, हकीकत में माफिया संरक्षण
जिले के विधायक और स्थानीय नेता मंचों पर "नशा मुक्ति" के भाषण देते हैं, लेकिन अवैध शराब कारोबार में संलिप्त लोग इन्हें "रिश्तेदार" या "दोस्त" बताते हैं।
जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं।
शराब माफिया के सामने ये नेता पूरी तरह नतमस्तक।
ग्रामीणों का कहना है – "ये लोग सिर्फ वोट के लिए आते हैं, समस्याओं के लिए नहीं।"
गुंडाराज का खौफ शराब माफिया के गुर्गे बेखौफ
शराब कोचियों ने अपने इर्द-गिर्द गुंडों की फौज खड़ी कर रखी है। जो भी विरोध करता है, उसे धमकियां, मारपीट या बदनामी का शिकार बनाया जाता है।
बंगाल मॉडल की तरह गुंडागर्दी जिले में चल रही है।
पुलिस और प्रशासन के सामने ये माफिया कानून से ऊपर खुद को मानते हैं।
पत्रकारों पर जानलेवा खतरा: सच्चाई उजागर करने की कीमत
जब मीडिया टीम ने बोरियाझर और आसपास के गांवों में पड़ताल शुरू की, तो शराब माफिया बौखला उठे।
गुर्गों ने पीछा किया, धमकी भरे फोन आए।
"खबर मत छापो, वरना अंजाम बुरा होगा" – यह धमकी सीधे माफिया के गुर्गों से मिली।
प्रलोभन भी दिया गया, लेकिन पत्रकारों ने साहस दिखाया।
मीडिया पर हमला लोकतंत्र पर हमला है। लेकिन दुखद यह है कि कुछ जिम्मेदार लोग सच्चाई उजागर करने वालों पर सवाल उठा रहे हैं, न कि माफिया पर कार्रवाई कर रहे हैं।
सरकार की नीतियां कागजों तक, जमीनी हकीकत शून्य
छत्तीसगढ़ सरकार ने अवैध शराब रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं:
नई शराब दुकानें खोलकर अवैध बिक्री कम करने की कोशिश।
उड़नदस्ता अभियान, संपत्ति जब्ती (BNS-107 के तहत)।
अप्रैल 2025 में गनियारी में अवैध शराब बेचने वालों के घर तोड़ने का आदेश।
लेकिन महासमुंद में ये नीतियां धरातल पर उतरती नहीं दिख रही। बिरकोनी जैसे गांवों में ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में ज्ञापन दिया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
आगे क्या..? जनता को उठानी होगी आवाज
तत्काल CBI/ED जांच की मांग।
RTI से शराब ठेकों की बिक्री का डेटा सार्वजनिक करें।
पुलिस और आबकारी अधिकारियों का ट्रांसफर और निलंबन।
ग्राम सभाओं में नशा मुक्ति अभियान।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए SP से FIR और प्रोटेक्शन।
महासमुंद की जनता अब चुप नहीं रहेगी। यह लड़ाई सिर्फ शराब की नहीं, भ्रष्टाचार, गुंडाराज और लोकतंत्र की रक्षा की है।
यह रिपोर्ट स्वतंत्र पत्रकारिता का हिस्सा है। साहसिक खुलासों का सिलसिला जारी रहेगा।
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