राजिम विधानसभा में इस बार बदलाव की बयार, स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा कांग्रेस पर भारी
परमेश्वर कुमार साहू@गरियाबंद।राजिम विधानसभा को वैसे तो कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है और तभी तो भाजपा जिन 21 प्रत्याशियों की घोषणा चुनाव पूर्व कर दी थी उसमें राजिम की सीट भी एक था। यहा पर शुक्ल बंधुओं का वर्चस्व बना रहा है जिसे तोड़ने भाजपा को कांग्रेस से जनता का मोहभंग और नाराजगी के स्तर पर प्रतीक्षा करना होता है तब कही जाकर इस अभेद किले को भाजपा ढ़हा पाती है।
दरअसल यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री स्वः पं.श्यामाचरण शुक्ल की कर्मभूमि रही है। वे लगातार यहा का प्रतिनिधित्व करते रहे है। संत कवि स्वः पवन दीवान की जन्मभूमि रही इस क्षेत्र में प्रतिनिधित्व के लिए श्यामाचरण शुक्ल और विधाचरण शुक्ल के रहते लोकसभा और विधानसभा में कांग्रेस की टिकट पर शुक्ल बंधुओं का एकाधिकार सा रहा है। जिसमें पवन दीवान जैसे बड़े राजनैतिक कद और लोकप्रिय नेता को भी जीवन भर अवसर की प्रतीक्षा में बीताना पड़ता था। जिसकी टीस हमेंशा पवन दीवान को सालती रही है।
कांग्रेस यहा से स्थानीय प्रत्याशी अब तक नही तलाश पायी है जिसके मूल में एक तो शुक्ल बंधुओं की दावेदारी जिनकी पहुंच सीधे पार्टी आलाकमान से जगजाहिर है। दूसरा यह कि जो उत्तराधिकारी स्थानीय स्तर पर दावेदार नजर आते है उनका भी जमीनी पकड़ क्षेत्र में ना के बराबर रही है। पूर्व विधायक रहे स्वः जीवन लाल साहू के परिवार से जो दावेदार है उनकी छबि क्षेत्र में दबंग और गुडांई की रही है। लोकेश पाण्डे और राघोबा महाड़िक भी अपना जनाधार लगातार खो रहे है। इसलिए पैरासूट उम्मीदवार कहे या कांग्रेस की मजबूरी की उसे अब भी अमितेष शुक्ल का विकल्प मिलना दुश्वार प्रतीत हो रहा है।और यही वह विषय है स्थानीय प्रत्याशी व सर्वसुलभ जनप्रतिनिधि की जिससे भाजपा जोर-शोर से भुनाने में लगी है जो सफल होती प्रतीत हो रही है। राजिम क्षेत्र की मतदाताओं में इस समय स्थानीय प्रत्याशी को लेकर अप्रत्यासित सा कौतुहल है। कांग्रेस प्रत्याशी और विधायक अमितेष शुक्ल को लेकर क्षेत्र मे जो भयंकर नाराजगी है जिसमें उनके पांच साल तक जनता से कटकर रहने को और जनता की पहुंच से दूरी को लेकर क्षेत्र में व्यापक चर्चाओं का दौर चल पड़ा है।
राजिम क्षेत्र की जनता का सीधा रूझान इस बार भाजपा प्रत्याशी रोहित साहू को लेकर संजीदा मालूम पड़ता है। छुरा और फिंगेश्वर अंचल जो विकास की दौड़ में काफी पीछे नजर आते है वहा भी चर्चाओं में आज यह बात उभर कर आ रही है। पूर्व में भाजपा के विधायकों द्वारा जो गड्ढ़ा और खाई निर्मित की गई है जिसे लेकर वे सशंकित भी रहते है। वावजूद स्थानीय पत्याशी की बयार इस बार बह चली है जो 17 नवंबर तक आंधी और बवंडर में बदलती दिख रही है। कांग्रेस का चुनावी मैनेजमेंट इस बार नदारत ही दिख रहा है जिससे यह चुनाव बड़े रोचक दौर में पहुच गया प्रतीत होता है।