राजिम विधानसभा में बूथ मैनेजमेंट का अहम रोल होगा चुनावी बिसात से नैया पार लगाने में
.क्षेत्र में कृषि कार्य जोरो पर, किसान धान कटाई, मिजाई और मण्डी में व्यस्त.
परमेश्वर कुमार साहू@गरियाबंद(छत्तीसगढ़)।वैसे तो पूरा छत्तीसगढ़ राज्य ही चुनावी आगोश में है बावजूद त्यौहारी सीजन के साथ-साथ अंचल में कृषि कार्य की व्यस्तता ने प्रत्याशियों के माथे पर बल ला दिया है। क्षेत्र के ग्रामीण जहां अपने-अपने खेत और खलिहान में व्यस्त है वही चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों की जोर आजमाईस उन्हें अपने पाले में लाने ऐड़ी चोटी एक किए हुए है। आखिर पांच साल में एक बार ही तो जनता जनार्दन को उनके भाग्य का फैसला करने का मौका मिलता है।बाकि के पांच साल तो उनके दिए मोबाईल नंबर पर काल ट्राई करते करते बीतना ही है,जो तब तक बंद रहते है जब तक दूसरा चुनाव न आ जावे। आश्चर्य न करे राजिम क्षेत्र की जनता के दिन तो बीते पाच साल ऐसे ही बीते है। उनके जनप्रतिनिधि द्वारा दी गई नंबर पूरे पांच साल बाद एक्टिव हुई है।
खैर जिस लोकतंत्र को हम सब आज जी रहे है वह एक भेड़ तंत्र ही है,जो भीड़ द्वारा नियंत्रित होती है इस बात से सभी इत्तेफाक रखने लग गए है और सभी मानने लगे है नर मंडों की गिनती के बल चलने वाली जो लोकतंत्र हमने अपनाया है उसमें ये दुस्वप्न तो देखने तैयार रहना होगा। बात यहा भाजपा-कांग्रेस की नही बल्कि जनता की नुमाइंदगी करने वाले हर उस सख्श की है जो एक बार चुनाव जीत जाने के बाद अपने रंग दिखाना शुरू करते है।
राजिम क्षेत्र की जनता ने वो दिन भी देखे हैं जब यहा का प्रतिनिधि कभी मुख्यमंत्री भी रहे। एक बार नही तीन-तीन बार। बावजूद यहा के लोगों को मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रखा गया। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल ही नही पूल-पुलिया तक के लिए अंचल तरसता रहा है। आज का दुर्भाग्य है कि प्रतिनिधि बदल गए लेकिन मानसिकता वही है। शायद यही वजह है कि अंचलवासी स्थानीय भी यही प्रत्याशियों की मांग करती रही है। और जब भी मौका मिला जनता ने दिल खोलकर स्थानीय प्रत्याशियों को आशीर्वाद दिए है। हाँ, यह अलग बात है कि जिन स्थानीय नेता को राजिम का प्रतिनिधित्व किये जाने का मौका मिला उन्होने भी जनता जनार्दन से दूरी बना ली और परिवारवाद की चादर ओढ़ ली। जिसके कारण यह क्षेत्र राजनैतिक शून्यता और गुमनामी का दौर देखने विवश है।
राजिम क्षेत्र की जनता और मतदाता आज भी अपने वजूद तलाशने मजबूर है कि एक कोई क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने भागीरथी मिल जावे। मतदाता टकटकी लगाये बैठे है कि अपनी प्रसिद्धि के अनुरूप क्षेत्र का विकास करे राजिम को जिला बनावे और आकांक्षी जिले के अनुरूप प्लान बनाकर स्थाई विकास करे न कि मड़ाई-मेला और तथाकथित कुंभ का आयोजन कर दिग्भ्रमित करें।
क्षेत्र के मतदाताओं ने हमेशा अपने कर्तव्यों का निर्वहन जोर-शोर से किया है। इस बार चूंकि त्यौहार के साथ-साथ फसल कटाई जोरो पर है इसलिए बूथ मैनेजमेंट की बड़ी अहमियत क्षेत्र में रहने वाली है। जो भी प्रत्याशी बूथ मैनेजमेंट द्वारा जितने अधिक से अधिक मतदाताओ को खेत-खलिहान से निकालकर मतदान केन्द्र तक पहुंचाने में सफल होगा उसकी चुनावी नैया ही पार लग पायेगी। चुनावी घोषणाओं का व्यापक असर भी किसानों में देखा जा रहा है। इसलिए गेंद अब प्रत्याशियों के पाले में है कि वे अपनी चुनावी कुशलता का परिचय देकर विजयश्री का वरण करे।