राजिम में इस बार व्यवहारिकता बनाम अव्यावहारिकता की लड़ाई,भाजपा प्रत्याशी द्वारा बडे-बूढ़ों का पैर छूकर ली जा रही चुनावी आशीर्वाद चर्चा में - Savdha chhattisgarh
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राजिम में इस बार व्यवहारिकता बनाम अव्यावहारिकता की लड़ाई,भाजपा प्रत्याशी द्वारा बडे-बूढ़ों का पैर छूकर ली जा रही चुनावी आशीर्वाद चर्चा में

 


परमेश्वर कुमार साहू@गरियाबंद(छत्तीसगढ)।चौबीस साल का युवा छत्तीसगढ़ आज जब अपनी स्थापना का वर्षगाठ मना रहा है तब वो राज्य विधानसभा के चुनाव के समर में भी दो-दो हाथ कर रहा है। गौर करने वाली बात यहा यह है कि प्रदेश के आम जन मानस में न ही राज्योत्सव की कही कोई उल्लास दिखाई नही पड़ रहा है और न ही चुनावी समर का कही कोई तपीश ही नजर आ रही है। आखिर प्रदेश की जनता में उत्साह की जो कमी देखी जा रही है उसके पीछे ऐसी कौन सी कारक है जो इस लोकतंत्र के महापर्व में इस बार नदारद नजर आ रही है।

आज युवाओं का रूझान निसंदेह आज राजनीति में तो नही ही कही जा सकती है। आज युवाओं को राजनीति बिल्कुल भी आकर्षित नहीं करता जान पड़ता हैं। कुछ ठोस कारण है जिसके कारण यह परिस्थितियों स्वतः ही निर्मित होती जा रही है। प्रदेश के नीति निर्मताओं को इस ओर गंभीरता से विचार करने की आज नितांत आवश्यकता है। जातिवाद उनमें से एक बड़ा कारक है जिससे राज्य की दोनो प्रमुख राजनैतिक पार्टिया इस जहर से भरे मालूम पड़ते हैं।कम से कम प्रत्याशियों की सूची देखकर तो जातिवाद, पूंजीवाद और गुडांवाद की काली छाया प्रदेश को निगल जाने को आतूर दिखती है।


प्रयागराज राजिम विधानसभा पर सियासी चर्चाओं पर विभिन्न माहौल 

जहां तक बात राजिम विधानसभा की करे तो यहा चुनाव व्यावहारिता बनाम अव्यावहारिकता का दिखाई पड़ रहा है। जहा एक ओर भाजपा प्रत्याशी द्वारा बड़े-बूढ़ों का पैर छूकर चुनावी आशिर्वाद ली जा रही है वही काग्रेस प्रत्याशी जो एक तथाकथित उच्च जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है उनसे झूकना तो दूर हाथ जोड़ना भी दुष्कर प्रतीत हो रहा है। यहा आमजन में व्यावहारिकता बनाम अव्यावहारिकता की चर्चा जोरो पर है।

राजिम विधानसभा वैसे तो काग्रेस पार्टी का गढ़ जैसा है जिसके मूल में सन् 1977 के दरम्यान बनी पैरी सिंचाई परियोजना द्वारा नहर से क्षेत्र में पानी पहुंचाने को एक पूरी पीढ़ी यहा के दीर्घकाल तक प्रतिनिधित्व करते रहे है।जिसे पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल की देन मानते थे। जिसके कारण से काग्रेस हमेशा यहा मजबूत स्थिति में रही। चूंकि अब वह पीढ़ी के कुछ चुनिंदा लोग ही हमारे बीच जीवित बचे है और उनकी नई पीढ़ी जो आज के मतदाता है वे बड़े तार्कित है और शासन की योजनाओं को किसी व्यक्ति विशेष के साथ जोड़कर देखने का पक्षधर नही है साथ ही वे इसे शासन व्यवस्था का हिस्सा मानते है और राजिम की असली समस्या भी यही है। कांग्रेस पार्टी जहां पूर्व में हुई नहर नाली के नाम पर आज भी राजनैतिक रोटी सेकते रहना चाहती है वही भाजपा भी जन्मजात कांग्रेसियो को पार्टी टिकट देकर और विधायक बनाकर पूर्व में लगान वसूलती रही है। हलांकि क्षेत्र की जनता सबकुछ जान समझ रही है। ये बात सच है कि स्थानीय प्रत्याशियों को बीच-बीच में भाजपा मौका देते रही है लेकिन वह भी जातिवादी गणित बैठाने।

राजिम क्षेत्र की जनता आज बहुत ही जागरूक है इसमें कोई संदेह नही है। यदि ऐसा नही होता तो पूर्व में जो मौके स्थानीय प्रत्याशियों को मिले है वह नही मिल पाता। देखते है इसबार ऊँट किस करवट बैठता है। बावजूद क्षेत्र में चर्चा प्रत्याशियों के निजी व्यवहार को लेकर इन दिनों जोरो पर है जो गौर करने वाली है।

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