भ्रष्ट्राचारियों को मिल रहा शासन का खुला संरक्षण - गणेश साहू
परमेश्वर कुमार साहू@गरियाबंद।पूरे गरियाबंद जिले में भ्रष्ट्राचार और भ्रष्ट्राचारियों का ही बोल बाला है। जिले की जनता लालफीताशाही के चुंगल में अपने को फसा हुआ महसूस कर रही है। बावजूद सरकारें सुशासन का तिहार और उत्सव मना रही है जो खेद का विषय है। शिकायतकर्ताओं की ही उल्टा जाँच कर यहां का जिला प्रशासन अपने मातहत कर्मचारियों को बचाने का खुला और घिनौना षडयंत्र कर रहा है। यह कहना है क्षेत्र के किसान नेता और समाजसेवी गणेश साहू का है।
समाजसेवी श्री साहू ने आगे बताया कि आज से आठ माह पूर्व महामहिम राज्यपाल महोदय से पंचायतों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार को लेकर मिलने निवेदन पत्र प्रेषित किया था। जिस पर उन्हे राज्यपाल कार्यालय द्वारा तो कोई सूचना नही दी गई बल्कि जिला पंचायत गरियाबंद और जनपद पंचायत छुरा द्वारा उल्टे उनका ही जॉच शुरू कर दी गई। इसमें कलेक्टर गरियाबंद को लिखित स्पष्ट्रीकरण देना तक शामिल है। शिकायत की जाँच करने की जगह शिकायतकर्ताओं की जॉच कर प्रशासन यह सिद्ध कर चुका है कि बंदरबाट में वे भी शामिल है अन्यथा स्पष्ट्रीकरण और जॉच तो शिकायत पर होता।
उन्होंने आगे बताया कि गरियाबंद जिले में प्रशासन नाम की कोई चीज नही है यहा हर जगह कामचलाऊ सरकार चल रही है। नेता अफसर और कर्मचारियों की तीकड़ी का ऐसा जाल पूर्व में कभी नही देखा गया जो आज देखने मिल रहा है। यदि आप पावर में नही है तो कोई सुनवाई जिले के किसी फोरम में नही होता है। यहाँ भ्रष्ट्राचारियों की बांछे खिली हुई है। कमीशन कमीशन का खुला और नंगा खेल खेला जा रहा है जिस पर मानिटरिंग पूर्णतः बंद है। संभाग कार्यालय तक में सुनवाई का कोई तंत्र मौजूद नही होना इस पूरे खेल में शासन की मौन स्वीकृति का साफ और स्पष्ट ईशारा है।
श्री साहू ने कहा कि एक तरफ सरकार का मुखिया भ्रष्ट्राचार को बर्दास्त नही करने की दुहाई देते घूम रहे है वही दूसरी तरफ जमीनी सच्चाई और हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। गरियाबंद जिला ही नही पूरा प्रदेश और प्रदेश की जनता आज लाचार होकर सब देखने सुनने विवश है। जिस उम्मीद के साथ पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने इस राज्य की जनता को अपना नसीब लिखने की छूट देते हुए राज्य निर्माण की सौगात दी थी आज 25 वर्ष बाद वह निर्णय समीक्षा मांग रही है। क्या वाकई वह सपना आज पूरा हुआ जो अटल जी ने कभी देखा था। लालफिताशाही के मकड़जाल में आज पूरा छत्तीसगढ़ कराह रहा है और अटल जी के उत्तराधिकारी कहलाने वाले सरकार के नुमाइंदे आज सत्ता सुख में इस कदर बौराये हुए है कि प्रदेश की जनता कि कराह उनके कानों तक नही पहुंच पा रही है। इसे विडंबना ही कह सकते है कि सत्ता सुंदरी का वरण करने वाले चाहे किसी भी पार्टी और जमात के हो सत्ता का मोहपाश सिद्धांतों की बली तक लेती रही है। तो क्या सिंद्धांतो की इस बलि में नेता अफसर और अधिकारी-कर्मचारियों की ही बांछे खिली रहेगी या कभी प्रदेश की भोलीभाली और निरिह जनता जो ज्यादातर ग्रामीण है का भी पौ-बारह हो पाएगा।