प्रथमिक स्वास्थ केंद्र खल्लारी में नेत्र दान पखवाड़ा का किया गया आयोजन
संध्या सेन sawdhan chhattisgarh news@ महासमुन्द जिला के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खल्लारी में दिनाक 07/09/2022को नेत्रदान पखवाड़ा डॉ मिश्रा (AMO) पी के पांडे , टकेश्वर सिन्हा (नेत्र चिकित्सा अधिकारी) , संजय साहू (फर्माशिसट ) Dr आराधना , शंकर यादव , डेविड कवर ,उमा साहू ,जोत्षना चंद्राकर सभी ने नेत्र दान करने के लिए जागरूता प्रचार प्रसार किए नेत्र दान कौन कर सकता है ये विस्तृत जानकारी, पांडे जी के द्वारा बताया गया बजार में रैली के द्वारा नेत्र दान करने के लिए जागरूकता रैली संजय साहू जी के द्वारा किया गया ,
टकेश्वर सिन्हा नेत्र सहायक अधिकारी ने ३ बाते कही
1-मनोवैज्ञानिको के अनुसार किसी अजनबी की आंखों में तुम तीस सेकेंड तक देख सकते हो ...उससे अधिक नहीं। अगर उससे ज्यादा देर तक देखेंगे तो तुम आक्रामक हो रहे हो और दूसरा व्यक्ति तुरंत बुरा मानेगा। बहुत दूर से तुम किसी की आँख में देख सकते हो; क्योंकि तब दूसरे को उसका बोध नहीं होता। लेकिन निकट से तुम व्यक्ति की असलियत में प्रवेश कर जाओगे।वास्तव में, आंखें शुद्ध प्रकृति है ...आंखों पर मुखौटा नहीं है। और दूसरी बात तुम्हारी अस्सी प्रतिशत जीवन यात्रा आँख के सहारे होती है। संसार के साथ तुम्हारा अस्सी प्रतिशत संपर्क आंखों के द्वारा ही होता है। यही कारण है कि जब तुम किसी अंधे व्यक्ति को देखते हो तो तुम्हें दया आती है।तुम्हें उतनी दया और सहानुभूति तब नहीं होती जब कि बहरे व्यक्ति को देखते हो।क्योकि अंधा व्यक्ति अस्सी प्रतिशत मुर्दा है। वह केवल बीस प्रतिशत जीवित है।
2-तुम्हारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा तुम्हारी आंखों से बाहर जाती है। तुम संसार में आंखों के द्वारा गति करते हो। इसलिए जब तुम थकते हो तो सबसे पहले आंखें थकती है। और फिर शरीर के दूसरे अंग थकते है। सबसे पहले तुम्हारी आंखें ही ऊर्जा से रिक्त होती है।अगर तुम अपनी आंखों को,जो तुम्हारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा है;पुनर्जीवित कर लो तो तुमने अपने को पुनर्जीवन दे दिया।तुम किसी प्राकृतिक परिवेश में कभी उतना नहीं थकते हो जितना किसी अप्राकृतिक शहर में थकते हो। कारण यह है कि प्राकृतिक परिवेश में तुम्हारी आंखों को निरंतर पोषण मिलता है। वहां की हरियाली, वहां की ताजी हवा,वहां की हर चीज तुम्हारी आंखों को आराम देती है ,पोषण देती है। एक आधुनिक शहर में बात उलटी है; वहां सब कुछ तुम्हारी आंखों को शोषण करता है; वहां उन्हें पोषण नहीं मिलता।तुम किसी पहाड़ पर चले जाओ जहां के माहौल में कुछ भी कृत्रिम नहीं है ..सब कुछ प्राकृतिक है, और वहां तुम्हें भिन्न ही ढंग की आंखें देखने को मिलेंगी। उनकी झलक उनकी गुणवता और होगी। गहरी होंगी, जीवंत और नाचती हुई होंगी। आधुनिक शहर में आंखें मृत होती है ..बुझी-बुझी होती है। उन्हें उत्सव का पता नहीं है।वहां आंखों में जीवन का प्रवाह नहीं है। बस उनका शोषण होता है।
3-भारत में हम अंधे व्यक्तियों को प्रज्ञाचक्षु कहते है। उसका विशेष कारण है। प्रत्येक दुर्भाग्य को महान अवसर में रूपांतरित किया जा सकता है। आंखों से होकर अस्सी प्रतिशत ऊर्जा काम करती है; और अंधा व्यक्ति का संसार के साथ अस्सी प्रतिशत संपर्क टूटा होता है। जहां तक बाहरी दुनिया का संबंध है, वह व्यक्ति बहुत दीन है। लेकिन अगर वह इस अवसर का उपयोग करना चाहे तो वह इस अस्सी प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर सकता है। यदि वह उसकी कला नहीं जानता है तो अस्सी प्रतिशत ऊर्जा, जिसके बहने के द्वार बंद है ;बिना उपयोग के रह जाती है। उसके पास अस्सी प्रतिशत ऊर्जा का भंडार पडा है।और जो ऊर्जा सामान्यत: बहिर्यात्रा में लगती है वही ऊर्जा अंतर्यात्रा में लग सकती है। अगर वह उसे अंतर्यात्रा में संलग्न करना जान ले तो वह प्रज्ञाचक्षु ,विवेकवान हो जाएगा।अंधा होने से कही कोई प्रज्ञाचक्षु नहीं होता है लेकिन वह हो सकता है। उसके पास सामान्य आंखें तो नहीं है। लेकिन उसे प्रज्ञा की आंखें मिल सकती है ...इसकी संभावना है। इशलिये हमे नेत्र दान कर समाज में प्रज्ञाचछू हुऐ लोगो का मदत करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया